क्षिप्रं विजानाति चिरं श्रुणोति विज्ञाय चार्थं भजते कामात्
नासम्प्रष्टो ह्याप्युङ्कते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्या ।। { महाभारत (उद्योग पर्व) ~ ३३-३२ }

जो शीघ्र ही कही गई बात के तात्पर्य को समझ लेता है, परन्तु फिर भी उसे देर तक ध्यान से सुनता है, और अभिप्राय को समझने के पश्चात, स्वेच्छानुसार उसका अर्थ नहीं करता है, तथा जो बिना पूछे दूसरे की बात में टांग नहीं अड़ाता है । इस प्रकार का आचरण एक बुद्धिमान मनुष्य की पहली पहचान है ।

One who comprehends the essence of what is being said, and still continues to listen attentively for a long time. And even after understanding the complete meaning, does not freely makes its sense according to his own view. or thoughts. Such characteristics is the prime identity of a wise learned man. { Mahabharat (Udyog Parv) ~ 33-32 }

 
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Ila's world, in and out - August 19, 2008 at 1:36 PM

पहली बार आपके चिठ्ठे पर आयी हूं, जितना भी देखा है उससे आपकी प्रतिभा का परिचय मिलता है. जीवनोपयोगी सूत्रों और उनके विष्लेषण के लिये धन्यवाद.आपका प्रयास वंदनीय है.

L.Goswami - August 20, 2008 at 2:55 PM

kafi sargarbhit bat likhi aapne.badhayi swikaren.

योगेन्द्र मौदगिल - August 21, 2008 at 8:11 AM

'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय..'
सुभाषितों की प्रस्तुति वाकई परमार्थ का कार्य है.
आप लगन से कर रहे हैं.
इस हेतु बधाई स्वीकारें.

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