यस्य यस्य ही यो भावस्तेन तेन समाचरन ।
अनुप्रविश्य मेधावी क्षिप्रमात्मवषम नयेत् ।। { पंचतंत्र (मित्रभेद) ~ ७४ }
भर्तुश्चित्तानुवर्तित्वं सुवृत्तं चानुजीविनाम् ।
राक्षसाश्चापी गृह्यन्ते नित्यम् छ्न्दानुवर्तिभिः ।। { पंचतंत्र (मित्रभेद) ~ ७५ }
सरूषि नृपे स्तुतिवचनं तद्वभिमते प्रेम तदद्विषि द्वेषः ।
तद्दानास्य च शंसा अमन्त्रतन्त्रं वशीकरणम् ।। { पंचतंत्र (मित्रभेद) ~ ७६ }
जिस मनुष्य का जिस प्रकार का स्वभाव होता है उसके समक्ष उसी के मनोनुकूल आचरण करने से वह शीघ्र ही वशीभूत (प्रभावित) हो जाता है । स्वामी के प्रति मनोनुकूल आचरण करना सेवक का सर्वोत्तम गुण होता है । सदैव मनोनुकूल आचरण और स्तुति-गान से तो राक्षस भी वशीभूत (प्रभावित) हो जाते हैं । राजा के क्रुद्ध होने पर उसकी स्तुति-प्रशंसा करना, उसके आत्मीयजनों के प्रति प्रेमभाव प्रदर्षित करना, उसके शत्रुओं के प्रति द्वेषभाव प्रदर्षित करना, उसके दानादि सुकृत्यों की प्रशंसा करना, ये सभी राजा (स्वामी) को वश में (प्रभावित) करने के लिए बिना मंत्र-तंत्र के वशीकरण होते हैं ।
If one behaves in accordance with a person's mind then one quickly gains control over his mind. To behave in accordance with the master is the prime duty of a servant. Through behaving always in accordance and praising one can subdue even devils, let alone humans. If a king is angry then praise him, show love towards his loved ones, hate towards his enemies, praising his charity and good deeds, these are sure ways of influencing and subduing. { Panchtantra (Mitrabheda) ~ 76 }
अत्यन्ताभावः (Absolute non-existence)
2 months ago
swami jee main isse kisi ladki ko vasibhut kar sakta hun.
BABA ,UJE ASI MANTRA BATO JO MAIN KISI BHI LADKI KO BAS ME KAR LOO SUNIL KUMAR