संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले ह्यम्रृतोपमे !
सुभाषितरसास्वादः संगतिः सुजने जने !! { चाणक्य नीति ~ १६-१८ }
इस संसार रूपी कटु वृक्ष के दो ही अमृत के समान फल हैं !
सुभाषित का रसास्वादन और सज्जनों की संगति !
This world is like a bitter tree, but there are two fruits of it which are like sweet ambrosia.
The listening of wise aphorisms and the company of good people. { Chaanakya Neeti ~ 16-18 }
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