अमन्त्रमक्षरम नास्ति नास्ति मूलमनौषधम ।
अयोग्यः पुरूषोनास्ति योजकस्तत्रदुर्लभः ।। { सुभाषित भाण्डागार ~ १६३-१५८ }
ऐसा कोई भी अक्षर नहीं जिससे मंत्र का निर्माण न किया जा सके, ऐसी कोई मूल (जड़ी बूटी ) नहीं जिसे औषधी के रूप में प्रयोग में ना लाया जा सके। ऐसा कोई भी पुरूष नहीं जो पूर्णतया अयोग्य हो, परन्तु उसका नियोजनकर्ता ही दुर्लभ होता है।
There is no letter which can't be transformed into Mantra, there is not a single herb which can't be used as a medicinal cure. There is not a single person which is absolutely useless, only the one who can utilize (manage) this person is hard to find. {Subhaashita Bhandagaar ~ 163-158}
ऐसा कोई भी पुरूष नहीं जो पूर्णतया अयोग्य हो (There is not a single person which is absolutely useless)
No Comment - Post a comment
Labels: Subhaashita Bhandagaar, सुभाषित भाण्डागार
पढ़ने वाले (अध्ययनशील) मनुष्यों में मूर्खता नहीं होती (One who always reads (studies) is devoid of ignorance)
No Comment - Post a comment
पठतो नास्ति मूर्खत्वं जपतो नास्ति पातकम् !
मौनिनः कलहो नास्ति, न भयम चास्ति जाग्रतः !! { सुभाषित भाण्डागार ~ १५८-५ }
पढ़ने वाले (अध्ययनशील) मनुष्यों में मूर्खता नहीं होती है, जप करने वालों में पातक (पाप) नहीं होते हैं, मौन धारण करने वालों में कलह (झगड़े) नहीं होता है, और जागते (सजग, सावधान) रहने वालों में भय नहीं होता है !
One who always reads (studies) is devoid of ignorance & foolishness, one who always keeps chanting holy words is devoid of bad Karma (past sins), one who maintains silence is devoid of any conflicts & fights, one who is always awake (aware) is devoid of any fear. { Subhaashita Bhandagaar ~ 158-5 }
Labels: Subhaashita Bhandagaar, सुभाषित भाण्डागार
दैवे पुरुषकारे च खलु सर्वं प्रतिष्ठितम !
पूर्वजन्मकृतं कर्मेहाजितं तद द्विधा कृतम् !! { चाणक्य नीति ~ ०१-४० }
भाग्य और पुरुषार्थ, इन दोनों आधार-स्तंभों के ऊपर ही यह संपूर्ण जगत स्थित है! पूर्वजन्मों में किये गये कर्म "भाग्य" और इस जन्म में किये गये कर्म "पुरुषार्थ" के नाम से जाने जाते हैं! अतः भाग्य और पुरुषार्थ वस्तुतः एक ही हैं ! पुरुषार्थ से ही भाग्य का निर्माण होता है ! मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है !
Fortune and efforts are the two foundations of this world. The hard work done in previous births becomes Fortune and the hard work done in this birth are the efforts. Therefore Fortune and efforts are same. With hardwork one can make his fortunes. { Chaanakya Neeti ~ 01-40 }
Labels: Chaanakya Neeti, Neeti, चाणक्य नीति, नीति
संसार रूपी कटु वृक्ष के दो अमृत फल !
(Two nectar fruits of the bitter tree called world)
No Comment - Post a comment
संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले ह्यम्रृतोपमे !
सुभाषितरसास्वादः संगतिः सुजने जने !! { चाणक्य नीति ~ १६-१८ }
इस संसार रूपी कटु वृक्ष के दो ही अमृत के समान फल हैं !
सुभाषित का रसास्वादन और सज्जनों की संगति !
This world is like a bitter tree, but there are two fruits of it which are like sweet ambrosia.
The listening of wise aphorisms and the company of good people. { Chaanakya Neeti ~ 16-18 }
Labels: Chaanakya Neeti, Neeti, चाणक्य नीति, नीति